सत्ता की परछाइयों में छिपी साजिशों का राजनीतिक थ्रिलर है - ‘रक्तबीज 2’

Jitendra Kumar Sinha
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‘रक्तबीज 2’ एक ऐसी राजनीतिक एक्शन थ्रिलर फिल्म है जो दर्शकों को शुरुआत से अंत तक अपनी सीट से बांधे रखती है। यह फिल्म सिर्फ सीमापार चल रही साजिशों की बात नहीं करती, बल्कि सत्ता के गलियारों में बुनी ऐसी योजनाओं को भी उजागर करती है, जिनसे देश की सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन चरमराने का खतरा पैदा हो सकता है।

फिल्म की कहानी के केंद्र में दो अधिकारी हैं। एक अनुभवी आईबी अधिकारी और दूसरा पश्चिम बंगाल पुलिस का एक साहसी अधिकारी। दोनों मिलकर देश में उभर रहे एक नए आतंकवादी नेता की गतिविधियों की जांच शुरू करते हैं, जिसका उद्देश्य भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय से चला आ रहा आपसी भरोसा और संबंधों को खत्म करना है। यह नेता सिर्फ हिंसा नहीं फैलाना चाहता है, बल्कि वह एक बड़े राजनीतिक खेल का मोहरा है, जिसे पर्दे के पीछे से संचालित किया जा रहा है।

कहानी तब और रोमांचक हो जाता है जब जांच के धागे सीधे-सीधे भारत के राष्ट्रपति की थाईलैंड यात्रा से जुड़ता है। अचानक बदलती परिस्थितियाँ, सुरक्षा एजेंसियों के भीतर की परेशानियाँ, और राज्य एव केंद्र की राजनीति, यह सब मिलकर कहानी को एक गहरे सस्पेंस से भर देता है। दर्शक लगातार सोचते रहते हैं कि आखिर असली साजिशकर्ता कौन है, और इसका अंतिम मकसद क्या है।

निर्देशक जोड़ी नंदिता राय और शिबोप्रसाद मुखर्जी ने फिल्म को जिस तरह रचा है, वह काबिल-ए-तारीफ है। दोनों ने राजनीतिक रहस्यों, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, और धरातल पर काम करने वाली खुफिया एजेंसियों की चुनौतियों को संवेदनशील और वास्तविक अंदाज़ में दिखाया है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शहरी और सीमाई इलाकों के तनावपूर्ण माहौल को खूबसूरती के साथ दर्शाता है, जबकि बैकग्राउंड स्कोर हर महत्वपूर्ण दृश्य को और प्रभावी बनाता है।

विक्टर बनर्जी अपने अनुभवी आईबी अधिकारी के किरदार में गंभीरता और परिपक्वता लाते हैं। अबीर चटर्जी और अंकुश हाजरा का प्रदर्शन धारदार है, और दोनों मिलकर फिल्म की गति को मजबूत बनाए रखते हैं। मिमी चक्रवर्ती और सीमा बिश्वास ने अपने-अपने किरदारों में बेहतरीन अभिनय प्रस्तुत किया है, जो कहानी को भावनात्मक और राजनीतिक गहराई दोनों प्रदान करता है।

‘रक्तबीज 2’ में एक्शन, रहस्य और राजनीतिक उतार-चढ़ाव का ऐसा मिश्रण है जो दर्शकों को न सिर्फ मनोरंजन देता है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करता है। फिल्म यह भी दिखाती है कि साजिशें सिर्फ सरहदों से नहीं, बल्कि अपने ही घर के भीतर से भी जन्म ले सकती हैं और यही इसे एक मजबूत और जागरूक सिनेमा के रूप में स्थापित करता है।



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